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Wednesday, March 20, 2013

राशनकार्ड


`राशनकार्ड`- मुक्त छंद कविता ।


(courtesy-Google images)
 



न जाने बाबू ने राशन कार्ड से, मेरा  नाम  कैसे  मिटा दिया..!!
 

भूखा  था  कल  तक आज भी,पापी पेट को, मैंने समझा दिया ।


देता रहा रिश्वत,निवाला छिन,बच्चों  के मुँह से, भीखमंगों को, 
 

कहाँ से मिल गया,हाज़मा भारी,रिश्वत देकर, दरिंदे नंगों को ।


निगल  गया  हूँ न जाने कितने,ही कंकर - सड़े गेहूँ के साथ,
 

हज़म कर भी पाऊँगा,या लगेंगे न जाने मुझे और कितने साल?


सौ जन्म भी होंगे कम,ढूंढ पाऊँ जो,खुद  को, इन टूटे आईनों में, 
 

बहते आंसु, आहें, बुझी निगाँहें, ताउम्र कटी, इन लंबी लाईनों में ।


छाया है अंधेरा,बिना तेल मिट्टी के,झोंपड़ी और मेरे  ख़्वाब में भी,
 

आखिरी बार हो दर्ज,नाम राशन में, हो जाए रोशन चिता मेरी? 


न जाने बाबू ने राशन कार्ड से, मेरा  नाम कैसे मिटा दिया..!!
 

भूखा था कल तक आज भी, पापी पेट को, मैंने समझा दिया ।
 

मार्कण्ड दवे । दिनांक - ०५ -०४ -२०११.

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